Diary



SHG went to Seema Agarwal. Chhotoo son of Sudha arrived from Haridwar

Monday, March 2, 2015



एक हास्य-कविता अज्ञात कवि की (कॉपी की हुई)

तुम चिकन सूप,बिरयानी हो, मैं कंकड़ वाली दाल, प्रिये!
तुम दीवाली का बोनस हो, मैं भूखों की हड़ताल, प्रिये!

तुम हीरे जड़ी तश्तरी हो, मैं अल्लुमिनियम की थाल, प्रिये!
तुम चंदन-वन की लकड़ी हो, मैं बबूल की छाल, प्रिये!

तुम सत्ता की महारानी हो, मैं विपक्ष की लाचारी हूँ,
तुम तेंदुलकर का शतक, प्रिये! मैं फॉलो-ऑन की पारी हूँ,

मुझे रेफ़री ही रहने दो, मत खेलो मुझसे खेल, प्रिये!
मुश्किल है अपना मेल, प्रिये! ये प्यार नहीं है खेल, प्रिये!

तुम व्यस्त सोनिया गाँधी सी, मैं मनमोहन सा खाली हूँ,
तुम हँसी माधुरी दीक्षित की, मैं पुलिस-मैन की ग़ाली हूँ.

तुम निर्मल पावन गंगा हो, मैं जलता हुआ पतंगा हूँ,
तुम राज घाट की शांति मार्च, मैं हिंदू मुस्लिम दंगा हूँ.

तुम जेट-विमान की शोभा हो, मैं बस की ठेलम ठेल, प्रिये!
मुश्किल है अपना मेल, प्रिये! ये प्यार नही है खेल, प्रिये!

मैं ढाबे के ढाँचे जैसा, तुम पाँच सितारा होटल हो,
मैं महुए का देसी पौवा, तुम रेड लेबल की बोतल हो

तुम चित्रहार का मधुर गीत, मैं कृषि दर्शन की झाड़ी हू,
तुम विश्व सुंदरी सी कोमल, मैं लोहा लाठ कबाड़ी हू.

तुम सोनी का मोबाइल हो, मैं टेलिफोन का चोंगा हूँ,
तुम मछली मानसरोवर की, मैं लक्षद्वीप का घोंगा हूँ

तुम फ़ौजी अफ़सर की बेटी,मैं किसान का बेटा हूँ,
तुम रबड़ी, खीर मलाई हो, मैं सत्तू सपरेटा हूँ.

इस कदर अगर हम चुप चुप के आपस मैं प्रेम बढ़ाएँगे,
तो एक रोज़ तेरे डॅडी अमरीश पूरी बन जाएँगे.

सब हड्डी पसली तोड़ मुझे भिजवा देंगे जेल, प्रिये!
मुश्किल है अपना मेल, प्रिये! ये प्यार नही है खेल, प्रिये!

Thursday, June 6, 2013

मैं केवल अपने से हारा 
यह मेरा अपनापन है या मेरी अपनी कारा
मैं केवल अपने से हारा.
झुका लिए हैं मैंने पथ पर जितने पर्वत अड़े खड़े थे 
मेरे बंदी है धरती पर जितने  सागर बड़े बड़े थे
मैं नूतन संसार ढूँढता नित नभ में  घूमा करता हूँ 
किन्तु बहुत ही छला गया हूँ मैं अपने सपनों के द्वारा ........
मैं केवल अपने से हारा.
 मेरे नैन निहारा करते आदर्शों के  गौरीशंकर 
 जिस पर बसते है जीवन के सतत अभीष्ट सत्य शिव सुन्दर 
 गली गली में देवालय हैं किन्तु देवता कहीं नहीं हैं
 आँगन में दीपक जलते हैं मन में किन्तु सघन अंधियारा .........
मैं केवल अपने से हारा.



Monday, January 2, 2012

R V Gupta: Executive meeting of all india body


रवींद्रनाथ ने अपने जीवन में एक घटना का उल्लेख किया है। रवींद्रनाथ ने लिखा है: पूर्णिमा की रात थी और मैं झील पर नाव में विहार करता था। छोटा सा बजरा था नाव का, उस बजरे के भीतर एक छोटा सा दीया जला कर मैं किताब पढ़ता था, सौंदर्य शास्त्र पर कोई किताब पढ़ता था। पढ़ता था उस किताब में कि सौंदर्य क्या है?
बाहर पूर्णिमा का चांद था, उसकी चारों तरफ चांदनी बरसती थी, झील की लहर-लहर चांदी हो गई थी। लेकिन रवींद्रनाथ अपने झोपड़े में, झील के बजरे में बंद, नाव के अंदर, एक छोटा सा दीया जला कर, उसके गंदे धुएं में बैठ कर सौंदर्य शास्त्र की किताब पढ़ रहे थे। आधी रात गए थक गईं आंखें, किताब बंद की, फूंक मार कर दीया बुझाया, लेटने को हुए--तो हैरान हो गए, चकित हो गए, उठ कर नाचने लगे! जैसे ही दीया बुझाया, द्वार से, खिड़की से, रंध्र-रंध्र से बजरे की, चांदनी भीतर घुस आई, नाचने लगी चांदनी चारों तरफ।
रवींद्रनाथ ने कहा, अरे, मैं पागल! मैं एक टिमटिमे दीये को जला कर, गंदे दीये को जला कर, धुएं में बैठा हुआ सौंदर्य के शास्त्र को पढ़ता था! और सौंदर्य द्वार पर प्रतीक्षा करता था कि बुझाओ तुम दीया अपना और मैं भीतर आ जाऊं! और द्वार पर रुका था सौंदर्य, कि मैं सौंदर्य शास्त्र में उलझा था तो वह बाहर प्रतीक्षा करता था।
बंद कर दी किताब, निकल आए बजरे के बाहर। आकाश में चांद था, चारों तरफ मौन झील थी। उसकी बरसती चांदनी में वे नाचने लगे और कहने लगे, यह रहा सौंदर्य! यह रहा सौंदर्य! मैं कैसा पागल था कि किताब खोल कर सौंदर्य खोजता था! वहां अक्षर थे काले, वहां कागज थे, आदमी के बनाए हुए शब्द थे। सौंदर्य वहां कहां था?
लेकिन हम सब किताबों में खोजते हैं उसे जो चारों तरफ मौजूद है। हम किताबों में खोजते हैं उसे जो हर घड़ी सब तरफ मौजूद है। और जब किताबों में नहीं पाते तो फिर कहते हैं, नहीं होगा ईश्वर। क्योंकि मैंने पूरी किताबें पढ़ डालीं, मिला नहीं मुझे अब तक। पागल हैं हम। जहां हम खोजते हैं वह आदमी की बनाई हुई किताबें, वहां ईश्वर कहां होगा? ईश्वर को देखना है तो वहां खोजो जहां आदमी का बनाया हुआ कुछ भी नहीं है। जहां आदमी के पहले जो था वह है। जिससे आदमी पैदा हुआ वह है। जिसमें आदमी खो जाएगा वह है। वहां खोजो।
ईश्वर का मतलब है: वह जिससे सब निकलता, जिसमें सब होता, जिसमें सब लीन हो जाता, लेकिन जो सदा रहता है। ईश्वर का मतलब इतना है कि जिससे सब निकलता, जिसमें सब रहता, जिसके बिना कुछ भी नहीं रह सकता, जिसमें सब अंततः लीन हो जाता। लेकिन जो न मिटता है, न बनता है, न खोता है, न जाता है, न आता है--जो है। जो है सदा, उसका नाम ईश्वर है।

जारी-----

Sunday, June 12, 2011

bhav-prastuti

बलिदान न सिंह का होते सुना सदा बकरे ही वेदी पे लाये गए
टेढ़े पादप काटे न गए सदा सीधों पे आरे चलाये गए 
विषधारी को दूध पिलाया गया सदा केंचुए ही हल से नसाए गए 
बलधारी का बाल न बांका हुआ सदा दीन  औ दुर्बल सताए गए

Tuesday, February 8, 2011

वह पथ क्या पथिक परीक्षा क्या जिस पथ पर बिखरे फूल न हों 
नाविक की धैर्य परीक्षा क्या लहरें जिसके प्रतिकूल न हों
  mfskanpur@gmail.com