Diary



SHG went to Seema Agarwal. Chhotoo son of Sudha arrived from Haridwar

Monday, January 2, 2012

R V Gupta: Executive meeting of all india body


रवींद्रनाथ ने अपने जीवन में एक घटना का उल्लेख किया है। रवींद्रनाथ ने लिखा है: पूर्णिमा की रात थी और मैं झील पर नाव में विहार करता था। छोटा सा बजरा था नाव का, उस बजरे के भीतर एक छोटा सा दीया जला कर मैं किताब पढ़ता था, सौंदर्य शास्त्र पर कोई किताब पढ़ता था। पढ़ता था उस किताब में कि सौंदर्य क्या है?
बाहर पूर्णिमा का चांद था, उसकी चारों तरफ चांदनी बरसती थी, झील की लहर-लहर चांदी हो गई थी। लेकिन रवींद्रनाथ अपने झोपड़े में, झील के बजरे में बंद, नाव के अंदर, एक छोटा सा दीया जला कर, उसके गंदे धुएं में बैठ कर सौंदर्य शास्त्र की किताब पढ़ रहे थे। आधी रात गए थक गईं आंखें, किताब बंद की, फूंक मार कर दीया बुझाया, लेटने को हुए--तो हैरान हो गए, चकित हो गए, उठ कर नाचने लगे! जैसे ही दीया बुझाया, द्वार से, खिड़की से, रंध्र-रंध्र से बजरे की, चांदनी भीतर घुस आई, नाचने लगी चांदनी चारों तरफ।
रवींद्रनाथ ने कहा, अरे, मैं पागल! मैं एक टिमटिमे दीये को जला कर, गंदे दीये को जला कर, धुएं में बैठा हुआ सौंदर्य के शास्त्र को पढ़ता था! और सौंदर्य द्वार पर प्रतीक्षा करता था कि बुझाओ तुम दीया अपना और मैं भीतर आ जाऊं! और द्वार पर रुका था सौंदर्य, कि मैं सौंदर्य शास्त्र में उलझा था तो वह बाहर प्रतीक्षा करता था।
बंद कर दी किताब, निकल आए बजरे के बाहर। आकाश में चांद था, चारों तरफ मौन झील थी। उसकी बरसती चांदनी में वे नाचने लगे और कहने लगे, यह रहा सौंदर्य! यह रहा सौंदर्य! मैं कैसा पागल था कि किताब खोल कर सौंदर्य खोजता था! वहां अक्षर थे काले, वहां कागज थे, आदमी के बनाए हुए शब्द थे। सौंदर्य वहां कहां था?
लेकिन हम सब किताबों में खोजते हैं उसे जो चारों तरफ मौजूद है। हम किताबों में खोजते हैं उसे जो हर घड़ी सब तरफ मौजूद है। और जब किताबों में नहीं पाते तो फिर कहते हैं, नहीं होगा ईश्वर। क्योंकि मैंने पूरी किताबें पढ़ डालीं, मिला नहीं मुझे अब तक। पागल हैं हम। जहां हम खोजते हैं वह आदमी की बनाई हुई किताबें, वहां ईश्वर कहां होगा? ईश्वर को देखना है तो वहां खोजो जहां आदमी का बनाया हुआ कुछ भी नहीं है। जहां आदमी के पहले जो था वह है। जिससे आदमी पैदा हुआ वह है। जिसमें आदमी खो जाएगा वह है। वहां खोजो।
ईश्वर का मतलब है: वह जिससे सब निकलता, जिसमें सब होता, जिसमें सब लीन हो जाता, लेकिन जो सदा रहता है। ईश्वर का मतलब इतना है कि जिससे सब निकलता, जिसमें सब रहता, जिसके बिना कुछ भी नहीं रह सकता, जिसमें सब अंततः लीन हो जाता। लेकिन जो न मिटता है, न बनता है, न खोता है, न जाता है, न आता है--जो है। जो है सदा, उसका नाम ईश्वर है।

जारी-----

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